History of Munda Tribe Language : Mundari

Dr. Man Masih Mundu is the author of the Mundari-English-Hindi Dictionary. Here in his words, we will know about the history of Mundari language. This article is based on his research and his expertise in the field of Mundari Langauge.

He writes the following the one of the most ancient language Mundari.

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मुण्डारी  भाषा भारत के आदि – निवासी जाति  की भाषा  है। इतिहास बताती है कि  यह जाति आर्य लोगों  के  भारत मे प्रवेश  करने करने के  कई युग  पूर्व  ही से यही बसी हुई थी तथा  इनकी संस्कृति और सभय्ता यहाँ फैली  हुई थी। कहा  जाता है की उस युग मे उनका राज्य सारे  उतर भारत मे  फैला  हुआ था और आर्यों  के यहाँ प्रवेश करने पर,पहली बार उन्ही  आदि – निवासियों  के साथ टकर  खाना पड़ा था। टकर  खाना पड़ा था। उत्तर  भारत में मुण्डा भाषा के अनेकों  गाँव , शहर  एवं स्थान पाये जाते है फ़ादर होफमैन (Ency.Mundarica,Vol.6:1819) लिखते हैं -The Rig Veda speaks of aboriginal leaders ruling over a hundred cities; of their firm forts and their castles;the composers of the 104th hymn of the first book seems to envy the wealth of the Dasa Kuyaya,in a passage thus interpreted by Ludwig:”While the poor Aryan Who can only wish for the wealth which he does not possess, has not even ordinary water to was”h himself in,the wives of the enemy in the insolent pride of their riches bathe in milk.”

इस अभिलेख  से मालूम  होगा कि यहाँ  के आदि – निवासी उस युग में कितनी उन्नत दशा में थे :उनमें  राजनीतिज्ञ  एवं  पढ़े  लिखे विद्वान थे जिन्ह्नोनें कंथित  अनूठा ग्रन्थ को रचा था।  इससे अनुमान किया जा सकता है कि  वे साहित्यक  सभयता  में कितने धनी  थे।  यह भी अनुमान किया जा सकता है कि  जब उक्त ग्रन्थ था तो उनकी साहित्य थी और जब साहित्य थी तो निशचय  लिपि  भी थी जिसके विषय कितने दोषदर्शकों  का खाना है कि  मुण्डा  लोगों  कि  लिपि  नहीं थी।

सरनत चन्द्र  रोय।, The Historian of Ancient India in the Historians History of the world से उदाहरण देते है जो खता है, “It was from the natives that the Arans learnt the art of building in stone, they  themselves like other Indo-Europeans understanding how to build in wood and piles or dwelling in caves.” {[Mundas&their country p-28].

The organisation of the villages under a headman was probably then already proper to one at least of the Santhali tribes. It so struck the Aryans that they were the first to call these headmen Mundas (itly, head ) and their people Mundas. The Mundas call themselves Horoko or Horo, men.

इस इतिहासिक  लेख  से ——- प्रमाण मिलता है कि आर्यों  ने उन आदि  निवासियों  से बहुत -सी विघा सीखी।  समभवतः उन्होंने उनके बहुमूल्य एवं चमत्कारपूर्ण लोगों से लेख —- थता पढ़ने -लिखने की शैली  और व्याकरण  आदि  भी अपना ली होगी।  सम्भवतः इन्होंने  उनकी लिपि को भी आलिंगन कर लिया होगा जिसने बदलते -बदलते वर्तमान देवनागरी का रूप धारण किया है।

मुण्डारी भाषा को एक पिछड़ी एवं दलित जाति  की भाषा समझ कर इसका अध्ययन या इसके विषय अनुसंधान  का कार्य तनिक भी नहीं हुआ है।  अगर किया जाय तो बहुत सी पौराणिक  बातें  मालूम हो सकती हैं।  यह कहना  असत्य नहीं होगा कि यह भाषा  संस्कृत से भी पुरानी   भारत की जितनी भी भाषायों  हैं  उनमें  संस्कृत ही एक भाषा  है जो मुण्डारी  भाषा से उच्चारण में एवं व्याकरण में मिलती जुलती है। वैदिक युग में संस्कृत ही आर्यों  की भाषा भी इसकी समानता मुण्डारी  भाषा से इस प्रकार  है :-

१ मुण्डारी  भाषा में देवनागरी लिपि से लिखने पर विसर्ग, हलंत ,अड़ (—)तथा अम  का प्रयोग प्रचूर  रूप से होता हैं  . इसी प्रकार संस्कृत में भी इनका प्रयोग प्रचूर  रूपेण होते हैं।

मुण्डारी  और संस्कृत में सब से अधिक समीपता एवं समानता सर्वनामों के वचनों  के प्रयोग में पाया जाता है।  मुण्डरी  के तीनों  पुरुषों  में तीन -तीन बचन हैं  अर्थात एक वचन ,द्विवचन एवं बहुवचन।  इसी प्रकार संस्कृत में भी तीनों पुरुष  में तीन -तीन वचन के प्रयोग में भी मुण्डारी  भाषा संस्कृत से एक कदम आगे बढ़ी हुई है एवं मुण्डारी व्याकरण की —— बताती हैं  वह यही कि मुण्डारी  के उत्तम पुरुष के द्विवचन और बहुवचन में दो व्यक्ति तथा अधिक व्यक्तियो की जिस स्पष्ठता का जिस बोध होता है यह स्पष्ठता संस्कृत में  नहीं है।

मुण्डारी और संस्कृत भाषाओ की इन समानताओं या भिन्नताओं का अध्ययन करने यही पता चलता है कि ये दोनों भाषा एक दूसरे के समकालीन भाषाएँ थी तथा इन दोनों भाषाओं  के विद्वान अपनी -अपनी भाषा में किसी से कम नहीं थे बल्कि उसमें निपुण थे।

मुण्डा  लोगों  के संबन्ध में कितने लेखको का कहना है कि ये ऑस्ट्रो-एशियन  दल के हैं  और कुछ लोगों का कहना है कि ये मंगोलियन दल के लोग हैं।  समय के परिवर्तन होने के कारण  इस जाति  का विभाजन तीन मुख्य साखाओं  में हुआ  अर्थात (१) संतल  मुण्डा (२) हो मुण्डा एवं (३)होडो  मुण्डा  . यघपि ये तीनों  दल के लोग युगों  से विभिन्न दिशाओं  में छितरे हुए हैं तथापि उनके बिच अपनी मातृ भाषा बोली जाती है और उस मातृ भाषा  का—–अध्ययन करने से मालूम होता कि यह मातृ  भाषा अन्य नहीं -मुण्डारी  ही है।  इन दलों के बीच शब्दो  के उच्चारण  एवं वाक्यों के प्रयोग में कुछ वभिन्नताएँ  हैं  किन्तु शब्द  रूप एवं धातृ रूप का अध्ययन  करने से करीब ८० से  १० प्रतिशत  मुण्डारी शब्द उपर्युक्त तीनों दलों द्वारा व्यवहारित पायी जाती है।  इसी से प्रमाणित होता है कि इस तीनों  दलों की उप्तत्ति -युग -युगों के पूर्व -एक ही जड़ ,एक ही कुल तथा एक ही पूर्वजों  से हुई है और आरम्भ में ये तीनों दल एक ही भाषा बोलते थे। उदहारण :-

ओवअ: ओड़अ :(घर), ओते (जमीन),हसा (मिट्टी ).पिड़ि(टॉड ),बा,बहा (फूल ),सकम (पत्ती ),जो (फल),दरू (वृक्ष ),उरि:मवेशी ),मेरोम (बकरी),सिम (मुर्गी),सुकरी (सुअर ),सेता (कुत्ता),हइ ,हकु (मछली ),कड़कोम (केकड़ा ),बिड (साँप ),चोके (मेंढक ),साइल (बारह सिंगा ),  कटा (पैर ),ती (हाथ ),बो: (सिर ),मेंद (आँख),लुतुर (कान ),मू ,मुहु (नाक ),डटा (दाँत ),जोम (खाना ),नू (पीना ),दअ :(पानी),लन्दा (हँसना ),नेल ,लेल (देखना ),दुब ,दुडुब (बैठना ,निर (भागना ),हद (काटना ),होयो (छोलना ),इर (काटना ),इत्यादि। सैकडो शब्द तीनों दलों द्वारा प्रतिदिन के बोल-चाल  में व्यवहारित  हैं।

फादर होफमैन  लिखते हैं –

It took the Aryans a long time to overcome and subjugate definitely the Aborigines and make of then really dasas, slaves and servants; nor was it without occasional reverses.such was a lot  of the tribes that remained in their country by intermarriage and otherwise, they became gradually Hindusied so as to lose even their language and give rise to many of the lower castes of North India and Bengal. Some tribes prefered to retire before the invaders [Ency.Mundarica Vol.6:1819p].

उपर्युक्त लेख से स्पष्ट होगा कि  आर्यों  से पराजित  होकर उन आदि  निवासियों कि क्या दशा गुजारी ?वे दास तथा गुलाम बना लिये  गये। कितनों को अन्तरजारतीय विवाह के लिए  वाध्य  किया गया और धीरे -धीरे वे अपनी भाषा ही नहीं अपना सर्वस्व भूल गये। तद पशचात इस देश में कई पिछड़ी जातियों का सृजन हुआ।

पर कितनों  ने पराधीनता स्वीकार नहीं की वेअपना सब कुछ छोड़कर जंगलों ,पहाड़ो तथा कठिन घाटियों  में भागकर शरण लिया।  वे अपने साथ कोई लिखित साहित्य या अभिलेख  तो लेकर नहीं गये , सिर्फ अपनी मातृ भाषा ही साथ-साथ ले गये और यह अति आश्चर्या की बात  है कई युगों के बीत  जाने पर भी इन्होंने  अपनी मातृ भाषा को जीता जागता एवं बोल -चल की भाषा रखी है।  इसी से अनुमान किया जा सकता है की मुण्डारी भाषा अपने युग में  कितनी

अधिक उन्नति के शिकार पर चढ़ी  हुई थी ,तथा इसका प्रभाव अपने लोगों  के हृदयों  के पट में कितनी गहिराई  तक जाकर समा  गई  थी जिससे लिखित अभिलेखों के नष्ट हो जाने पर भी यह भाषा उन लोगों के बीच  अभी भी बोल-चल की जीवित भाषा है।

इन्हीं  कारणों  से  Dr .G. A.Grierson ने अपनी पुस्तक Linguistic survey of India (1906)  खण्ड IV में लिखा है कि  भारत की कुल आबादी का एक पाँचवा  भाग द्रविड़ो  की भाषा के साथ, मुण्डारी  भाषा बोलता है।


Johaar Friend,

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